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Part 2

Wednesday 2 February 2011

कोरिया में क्रिसमस

कोरिया में क्रिसमस



आज क्रिसमस है. यहाँ कोरिया में यह एक बड़ा त्यौहार है. शायद इसका अकार और आयोजन इनके अपने पारंपरिक त्योहारों जैसे कोरियाई नववर्ष और छुसोक (थैंक्सगिविंग डे) को भी पीछे छोड़ता जा रहा है. कोरिया में क्रिसमस एक धार्मिक त्यौहार के रूप में नहीं मनाया जाता. बस एक त्यौहार है जिसे मनाना है इसलिए लोग मनाते हैं और बड़े ही जोश और उल्लास से मनाते हैं. चाहे कोई इसाई हो या बौद्ध या नास्तिक, सभी लोग उतने ही उत्साहित दिखाई देते हैं इस त्यौहार के प्रति. कार्यालय, दूकान, शोपिंग माल, अस्पताल, पुलिस स्टेशन- जिधर देखिये आपको क्रिसमस ट्री, रंग-बिरंगी चमकीली गेंदें, बड़े-बड़े बोर्ड्स पर लिखा 'मैरी क्रिसमस' या 'हैपी बर्थडे जीसस' जरुर दिख जाएगा.

पर जिस बात ने मुझे आश्चर्य में डाला वह यह थी कि लोग यहाँ क्रिसमस को एक तरीके के वैलेंटाईन डे के रूप में भी मनाते हैं. मैं अपनी एक मित्र से बातें कर रहा था. अचानक उसने पूछा कि 'वॉट आर यू डूइंग दिस क्रिसमस'? मैंने कहा,'नथिंग स्पेशल... वॉट अबाउट यू? गोइंग टू होमटाउन?' उसने कैजुअली जवाब दिया' पागल हो क्या, क्रिसमस में पैरेंट्स के पास थोड़े न जाते हैं? आई हैव अ बॉयफ्रेंड.. मे बी वी विल गो फॉर अ ट्रिप और समथिंग लाइक  दैट.'  आगे उसने बताया कि सामान्यतः लोग क्रिसमस अपने प्रेमी या जीवनसाथी के साथ मनाते हैं. वैसा धार्मिक टाइप का कुछ नहीं है. हाँ जिनका कोई बॉयफ्रेंड या गर्लफ्रेंड नहीं है या टीनेज छात्र इस दौरान सोशल वर्क के लिए भी जाते हैं. क्रिसमस के समय यहाँ शहरों और ज्यादातर ग्रामीण क्षेत्रों में जरुरतमंदों की मदद के लिए विभिन्न प्रकार के कैम्प लगाए जाते हैं. बड़े लोग चर्च भी जाते हैं प्रार्थना के लिए.वैसे कोरिया में प्रेम का जो स्वरुप है उसके हिसाब से मुझे नहीं लगता कि उन्हें वैलेंटाईन डे या क्रिसमस जैसे किसी दिन की जरुरत है इसके लिए. [इसपर जल्दी ही विस्तार से लिखूंगा ;)] पर सोशल सर्विस वाला कॉन्सेप्ट अच्छा लगा मुझे.

मेरे हिसाब से कोरिया भी अन्य एशियाई देशों की तरह पश्चिमी सभ्यता और संस्कृति (खासकर अमरीकी) की नक़ल करने में कहीं से भी पीछे नहीं है बल्कि औरों से बहुत आगे निकल गया है. बाकी कमी यहाँ के मिशनरियों और फाइवस्टार चर्चों ने पूरी कर दी है. लेकिन इस बीच एक चीज बहुत अच्छी लगी मुझे कि इन्होने इन सबके बीच भी अपनी एशियाई पहचान को नहीं खोया है. उदाहरण के लिए यहाँ सान्ताक्लौज को सान्ताक्लौज बाबा कहा जाता है और 'सान्ताक्लौज आएगा' की जगह 'सान्ताक्लौज बाबा आयेंगे' ज्यादा प्रयोग करते हैं लोग. यह छोटी सी चीज भी एक सुखद अहसास देती है, अपनी जड़ों का अहसास. 

कल रात से ही सभी भारतीय और अन्य एशियाई मित्र भी फेसबुक पर 'मेरी क्रिसमस' के सन्देश चिपका पर चौड़े हो रहे थे. कोइ भी अपने को आधुनिक साबित करने का मौक़ा छोड़ना नहीं चाह रहा था. मैनें भी इन्फीरियरिटी कॉम्प्लेक्स फील करते हुए एक 'मेरी क्रिसमस' चेप ही दिया लेकिन असलियत यह है कि मुझे ये 'सान्ताक्लौज' कौन है, आजतक नहीं पता. कुछ महसूस ही नहीं होता क्रिसमस और वैलेंटाइन डे जैसे उत्सवों पर. इससे ज्यादा फीलिंग तो मुझे 'तीज और 'विश्वकर्मा पूजा' पर आ जाती है. कुछ लोग तो अल्ट्रा-एक्साईटेड हैं. फेसबुक पर कल की योजनाएं डाली जा रही थीं. लोग उनपर कमेन्ट करके अपने को कृतार्थ कर रहे थे. लड़कियों की प्रोफाइल्स पर ज्यादा भीड़ है. ज्यादातर लोग वही हैं जिन्हें दशहरे की डेट याद नहीं रहती. ईद पर टोपी न पहनने वाले मित्र आज सांता वाला टोपा लगाके फोटो ऑरकुट वाल पर टांग रहे हैं. दोस्त लोग गए हैं बाहर क्रिसमस मनाने मैं यहाँ पोस्ट लिख रहा हूँ. चलता हूँ जरा अदरक वाली चाय बनाकर पिउंगा. शायद कुछ क्रिस्मैस्टिक फीलिंग आये...  :)

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