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Part 2

Wednesday, 2 February 2011

एक जनवरी की शाम नुसरत फ़तेह अली खान के नाम

एक जनवरी की शाम नुसरत फ़तेह अली खान के नाम



आज एक जनवरी है. साल का पहला दिन. मन तो था कि कहीं बाहर जाकर सियोल की नाईट लाइफ का मजा लिया जाये पर सोमवार से मिड-सेमेस्टर एक्जाम्स शुरू हैं. सो इस इच्छा को दबाकर कुछ इनडोर मनोरंजन करने की सोची. यूट्यूब खोलकर अपने पसंदीदा गायक नुसरत साहब की तीन नायाब ग़ज़लें/कव्वालियाँ सुनी और यकीन मानिए.. यह शाम इससे बेहतरीन नहीं हो सकती थी. आपके साथ शेयर करने का मोह नहीं छोड़ पा रहा हूँ, समय हो तो सुन के देखिएगा. ये स्टूडियो रेकॉर्डिंग नहीं हैं न ही अमरीका या यूरोप के किसी बड़े ऑडिटोरियम में किये गए शो की रेकॉर्डिंग. एकदम कच्चा माल है. उनके साधारण लाइव प्रोग्रामों से, हम-आप जैसे लोगों के सामने. तो आज की शाम सुरों के इस बादशाह के नाम..........
पहला गीत है अँखियाँ उडीक दियां. इस गीत की धुन का क्या कहना, मैं तो बस दीवाना हूँ इसका. भारतीय संगीतकार तक इसकी नक़ल करने का मोह सवरण नहीं कर पाए थे..



दूसरी पेशकश है साँसों की माला पे सुमिरुं मैं पिय का नाम. इस गीत को आप धार्मिक गीत मान कर सुनें या रूमानी गीत, रूह तक को झनझना देता है.




और तीसरा गीत है सानु इक पल चैन न आवे सजना तेरे बिना. इस गीत के बारे में क्या कहूं, बस दिल को छूकर निकल जाता है...





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