पार्क भी चुपके से कुछ कहता है ......
दिल्ली में कुछ पार्क ही तो ऐसी जगह लगी जन्हा धर्मनिरपेक्षता का जीता जगता सा मंज़र नज़र आता है मुझे, जन्हा लोकतंत्र सचमुच झलकता सा दिखा, एकुँलिटी का असली अहसास मुझे सुबह पार्क में जाकर ही होता है ।
छोटे बड़े होने का अहसास तक मानव को शायद नहीं होता होगा।
हिन्दू -मुस्लिम एक ज़मीन पर दोड़ते हैं तो सिख , पारसी , इसाई और अलाफ्ला, तमाम धर्मो के नुमानिंदे बिना भेदभाव के इकठे बेठे , हँसते , योग करते , मोर्निंग और एवेनिंग वाल्क में डूबे, तैरते, दिखते हैं ।
में सोचता फिरता रहा क्या उस वक़्त पार्क नहीं होते थे क्या? जब हरिवंश जी ने "मधुशाला" को सेकुलरिस्म का जीता जगता उदहारण कहा था।
छोटे बड़े होने का अहसास तक मानव को शायद नहीं होता होगा।
हिन्दू -मुस्लिम एक ज़मीन पर दोड़ते हैं तो सिख , पारसी , इसाई और अलाफ्ला, तमाम धर्मो के नुमानिंदे बिना भेदभाव के इकठे बेठे , हँसते , योग करते , मोर्निंग और एवेनिंग वाल्क में डूबे, तैरते, दिखते हैं ।
में सोचता फिरता रहा क्या उस वक़्त पार्क नहीं होते थे क्या? जब हरिवंश जी ने "मधुशाला" को सेकुलरिस्म का जीता जगता उदहारण कहा था।
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