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Part 2

Wednesday 2 February 2011

अथ श्री एग्रीगेटर कथा

अथ श्री एग्रीगेटर कथा




डिस्क्लेमर: पोस्ट ऐसे ही मौज में लिख दी गयी है, इसलिए सतही है. किसी गंभीर विश्लेषण की उम्मीद न रखें. जरूरी काम निपटाने के बाद ही इधर समय दें :) :)

आजकल हिन्दी ब्लॉगजगत में 'एग्रीगेटर संकट' की बड़ी चर्चा है. हर दो-तीन दिन में किसी न किसी ब्लॉग पर एग्रीगेटर्स की शोक-सभा दिख जाती है. हर कोइ आकर अपने श्रधांजलि अर्पित कर जाता है, कोइ कहता है कि फलां एग्रीगेटर के जाने से जो स्थान रिक्त हो गया है उसे भरना असंभव है, कोइ कहता है हमें उनके बिना काम चलाने की आदत डालनी होगी. फिर कोइ आकर दिवंगत एग्रीगेटर की जगह एक नए एग्रीगेटर के निर्माण का आह्वान करता है, बाकी लोग जोश में आकर जोरदार समर्थन करते हैं. घनघोर हल्ला मचता है. फिर लोग चद्दर तान के सो जाते हैं..

एग्रीगेटर का महत्व हर भाषा के ब्लोग्स में रहा है. इससे लोगों को ताजा सामग्री एक जगह मिलती रहती है. उस दिन की कुछ अच्छी पोस्ट्स भी एक जगह पढने को मिल जाती हैं. अंगरेजी के ब्लोग्स में अगर पाठक तत्काल न आ पाए तो बाद में काम की सूचना को गूगल पर ढूंढता हुआ आ जाता है. और अंगरेजी के पाठक इतने हैं कि ऐसे भूले-भटके पाठकों की संख्या भी ठीक-ठाक होती है. पर एक तो अपनी हिन्दी में कोइ गूगल सर्च नहीं करता, सिवाय हिन्दी के विद्यार्थियों/साहित्य प्रेमियों और खुद ब्लोगरों को और फिर जिन विषयों पर अधिकाँश हिन्दी ब्लोगर लिख रहे हैं शायद ही उनके लिए कोइ गूगल सर्च करेगा. अब जो बहुत पुराने ब्लोगर हैं, जिनका नाम स्थापित है उन तक तो पाठक किसी तरह पंहुच ही जाते हैं. कुछ वास्तव में उनके लेखन को पढने के लिए तो कुछ सिर्फ इसलिए कि उन ब्लोगों पर ज्यादा लोग आते हैं तो शायद वहाँ से कुछ पाठक मुझे भी मिल जाएँ.

नए ब्लोगर्स के लिए समस्या बड़ी गंभीर है. जाहिर है आप कालजयी लेखन न भी कर रहे हों तो भी ये तो इच्छा रहती ही है कि कुछ लोग पढ़ें आपको, कुछ बोलें उसपर. लेकिन लोगों को पता तो चले. अब इसके लिए या तो सबको थोक भाव में ई-मेल (जिसको आप तकनीकी भाषा में स्पैम कह सकते हैं) भेजा जाए या फिर लोगों के ब्लोग्स पर जाके बेमतलब गरिया आयें, वो बदला लेने आएगा ही, या फिर कुछ मीठा ही बोल आयें, शायद गदगद होकर श्रीमान अपने भक्त को देखने आ जाएँ. कई तरीके हैं और मेरे हिसाब से कोइ गलत नहीं है. अभी कुछ दिन पहले एक एग्रीगेटर शोक सभा में ही किन्ही का वक्तव्य पढ़ रहा था कि एग्रीगेटर के टाइम में कई बार नए और फालतू ब्लोगर भी भड़कीला शीर्षक देकर पाठक बटोर लाते थे. सही बात है. पर हमें यह समझना चाहिए कि हिन्दी ब्लोगिंग अभी बचपन के दौर में है, या यों कहें कि डायपर में ही है. अभी काफी दूर जाना है इसे. अभी तो नेट पर हिन्दी में कुछ है ही नहीं. छोटी-छोटी भाषाओं में इससे ज्यादा सामग्री उपलब्ध है. अभी समय है कि कोइ हिन्दी में कैसा भी लिख रहा हो, कैसे भी पाठक बटोर ला रहा हो उसको प्रोत्साहित करने का. वैसे आप कौन से तीर चला रहे थे कम्प्युटर पर बैठ के. बेचारे की पोस्ट पढके कुछ लिख दीजिये. आदरणीय समीर जी और संगीता पुरी जी जैसे कुछ ब्लोगरों का नाम उल्लेखनीय है इस काम के लिए. एक बार हिन्दी में पर्याप्त सामग्री हो जाए नेट पर, लोग सर्च इंजनों के जरिये आने लगें फिर गुणवता के आधार पर छांट कर पढ़िए. फिर एग्रीगेटर बनाने के लिए मनुहार नहीं करनी पड़ेगी. खुद बड़ी कम्पनियां आगे आयेंगी.

कुल मिलाकर एग्रीगेटरों की कमी तो खल रही है. एक दो नए-नए एग्रीगेटर हैं बाज़ार में पर उनमें ब्लोगवाणी वाली बात नहीं दिखती. एक इंडली है- उसमें एक तो हर पोस्ट जाकर मैनुअली फीड करनी पड़ती है और दुसरे उसपर ज्यादा लोग जाते नहीं तो फिलहाल तो ज्यादा उम्मीद करना बेकार ही है उससे. एक दो और हैं जैसे रफ़्तार और हमारीवाणी पर उनका फंडा मुझे आज तक समझ नहीं आया. कभी कोइ पेज नहीं खुलता,  कभी ब्लॉग नहीं जुड़ता और जुड़ जाए तो पोस्ट नहीं दिखती. इधर एक दो नए प्रयास किये गए हैं जैसे हिन्दी ब्लॉग-जगत और ब्लॉग परिवार. ये प्रयास निश्चित रूप से सराहनीय हैं. अगर अलग अलग क्षेत्रो और थीम्स से जुड़े ऐसे-ऐसे कई ब्लॉग बन जाएँ तो एक पूर्ण एग्रीगेटर की कमी को पूरा किया जा सकता है.

बाकी एक लाइन में निष्कर्ष यह है कि बच्चा, पाठकों की संख्या और टिप्पणियों के पीछे मत भागो सामग्री की गुणवता पर ध्यान दो. पाठक झक्क मारकर पीछे आयेंगे. :) अभी नहीं तो २-४ साल बाद. मेरे जैसा चालू टाइप मत लिखो, भाई लोगों के ब्लोग्स से सीखो ;)

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